Wednesday, April 22, 2015

फेसबुक और व्हाट्सअप क्रांतिकारी दौर

फेसबुक और व्हाट्सअप अपने क्रांतिकारी दौर से गुजर रहा है...

हर लौंडा
क्रांति करना चाहता है...
कोई बेडरूम में लेटे लेटे गौहत्या
करने वालों को सबक सिखाने कि बातें कर रहा है तो
किसीके इरादे सोफे पर बैठे बैठे मुसलमानों या बांग्लादेशियों को
उखाड फेंकने के हो रहे हैं...

कुछ, हफ्ते में एक दिन नहाने वाले स्वच्छता अभियान की
खिलाफत और समर्थन कर रहे हैं ।

अपने बिस्तर से उठकर एक
गिलास पानी लेने पर नौबेल पुरस्कार कि उम्मीद रखने वाले
बता रहे हैं कि मां बाप की सेवा कैसे करनी चाहिये ।

जिन्होंने आज तक बचपन में कंचे तक नहीं जीते वह बता रहे हैं
कि भारत रत्न किसे मिलना चाहीये ।

जिन्हें गली क्रिकेट में इसी शर्त पर खिलाया जाता था कि बॉल
कोई भी मारे पर अगर नाली में गयी तो निकालना तुझे
ही पड़ेगा वो आज कोहली को समझाते पाये जायेंगे की उसे
कैसे खेलना है ।

जो महाशय लडकों को भी बुरी नजर से देखते हैं
आज उन्हें नारी सुरक्षा की चिंता है ।
देश में महिलाओं की
कम जनसंख्या को देखते हुये उन्होंने नकली ID's बना कर
जनसंख्या को बराबर कर दिया है ।

जिन्हें यह तक नहीं पता
कि हुमायूं बाबर का कौन था वह आज बता रहे हैं कि
किसने कितनों को काटा था ।

कुछ हम जैसे दिन भर शायरीयाँ पेलेंगे जैसे
'गा़लिब' के असली उस्ताद तो यहीं बैठे हैं !

जो लौंडे एक बालतोड़ हो जाने पर रो रो कर पूरे मोहल्ले में
हल्ला मचा देते हैं वह देश के लिये सर कटा लेने
की बात करते दिखेंगे ।

किसी भी पार्टी का समर्थक होने में समस्या यह है कि भाजपा समर्थक को अंधभक्त,

"आप" समर्थक चूतिये तथा काँग्रेस समर्थक बेरोजगार करार दे दिये जाते हैं ।

कॉपी पेस्ट करनेवालों के तो कहने ही क्या
किसी की भी पोस्ट चेंप कर एेसे व्यवहार करेंगे जैसे
साहित्य की गंगा उसके घर से ही बहती है ।

लेकिन समाज के
असली जिम्मेदार नागरिक हैं टैगिये,
इन्हें एैसा लगता है
कि जब तक यह गुड मॉर्निंग वाले पोस्ट पर टैग नहीं करेंगे तब
तक लोगों को पता ही नही चलेगा कि सुबह हो चुकी है ।

जिनकी वजह से शादियों में गुलाबजामुन वाले स्टॉल पर एक आदमी
खड़ा रखना जरूरी है वो   आम बजट पर टिप्पणी करते हुए पाये जाते हैं...

कॉकरोच देखकर चिल्लाते हुये दस
किलोमीटर तक भागने वाले पी एम को धमका रहे होते हैं कि
"मोदी अब भी वक्त है सुधर जाओ"
क्या वक्त आ गया है वाकई

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