Tuesday, April 7, 2015

टूट मत जाना .....

एक ट्रक में मारबल का सामान जा रहा था,  उसमे टाईल्स भी थी , और भगवान की मूर्ती भी थी ...!!

रास्ते में टाईल्स ने मूर्ती से पूछा ..

भाई ऊपर वाले ने हमारे साथ ऐसा भेद - भाव क्यों किया है ...!!

मूर्ती ने पूछा कैसा भेद भाव...  ???

टाईल्स ने कहा तुम भी पथ्थर मै भी पथतर ..!!
तुम भी उसी खान से निकले , मै भी..

तुम्हे भी उसी ने ख़रीदा बेचा , मुझे भी
तुम भी मन्दिर में जाओगे, मै भी ...

पर वहां तुम्हारी पूजा होगी ...
और मै पैरो तले रौंदा जाउंगा ऐसा क्यों??

मूर्ती ने बड़ी शालीनता से जवाब दिया,

के तुम्हे जब तराशा गया ,
तब तुमसे दर्द सहन नही हुवा ,
और तुम टूट गये टुकड़ो में बंट गये ...

और मुझे जब तराशा गया तब मैने दर्द सहा , मुझ पर लाखो हथोड़े बरसाये गये , मै रोया नही...!!

मेरी आँख बनी , कान बने , हाथ बना, पांव बने ..
फिर भी मैं टूटा नही ....  !!

इस तरहा मेरा रूप निखर गया ...
और मै पूजनीय हो गया ... !!

तुम भी दर्द सहते तो तुम भी पूजे जाते..

मगर तुम टूट गए ...
और टूटने वाले हमेशा पैरों तले रोंदे जाते है...  !!

# मोरल  #

भगवान जब आपको तराश रहा हो तो, टूट मत जाना ...
हिम्मत मत हारना ... !!
अपनी रफ़्तार से आगे बढते जाना मंजिल जरूर मिलेगी .... !!

बुलेशाह कहते हैं...

चढ़दे सूरज ढलदे देखे,
बुझदे दीवे बलदे देखे।
हीरे दा कोइ मुल ना जाणे,
खोटे सिक्के चलदे देखे।
जिना दा न जग ते कोई,
ओ वी पुतर पलदे देखे।
उसदी रहमत दे नाल बंदे,
पाणी उत्ते चलदे देखे।.
लोकी कैंदे दाल नइ गलदी, 
मैं ते पथर गलदे देखे।
जिन्हा ने कदर ना कीती रब दी,
हथ खाली ओ मलदे देखे।

कई पैरां तो नंगे फिरदे,
सिर ते लभदे छावा,
मैनु दाता सब कुछ दित्ता,
क्यों ना शुकर मनावा ..।

चाय के दो कप

एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे
आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढाने वाले हैं ...

उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बडी बरनी ( जार ) टेबल पर रखा और उसमें
टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक कि उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची ...
उन्होंने छात्रों से पूछा - क्या बरनी पूरी भर गई ? हाँ ...
आवाज आई ...
फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने छोटे - छोटे कंकर उसमें भरने शुरु किये धीरे - धीरे बरनी को हिलाया तो काफ़ी सारे कंकर उसमें जहाँ जगह खाली थी , समा गये ,
फ़िर से प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्या अब बरनी भर गई है , छात्रों ने एक बार फ़िर हाँ ... कहा
अब प्रोफ़ेसर साहब ने रेत की थैली से हौले - हौले उस बरनी में रेत डालना शुरु किया , वह रेत भी उस जार में जहाँ संभव था बैठ गई , अब छात्र अपनी नादानी पर हँसे ...
फ़िर प्रोफ़ेसर साहब ने पूछा , क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई ना ? हाँ
.. अब तो पूरी भर गई है .. सभी ने एक स्वर में कहा ..

सर ने टेबल के नीचे से
चाय के दो कप निकालकर उसमें की चाय जार में डाली , चाय भी रेत के बीच स्थित
थोडी सी जगह में सोख ली गई ...

प्रोफ़ेसर साहब ने गंभीर आवाज में समझाना शुरु किया

इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो ....

टेबल टेनिस की गेंदें सबसे महत्वपूर्ण भाग अर्थात भगवान , परिवार , बच्चे , मित्र , स्वास्थ्य और शौक हैं ,

छोटे कंकर मतलब तुम्हारी नौकरी , कार , बडा़ मकान आदि हैं , और

रेत का मतलब और भी छोटी - छोटी बेकार सी बातें , मनमुटाव , झगडे़ है ..

अब यदि तुमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकरों के लिये जगह ही नहीं बचती , या
कंकर भर दिये होते तो गेंदें नहीं भर पाते , रेत जरूर आ सकती थी ...
ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है ...

यदि तुम छोटी - छोटी बातों के पीछे पडे़ रहोगे
और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिये अधिक समय
नहीं रहेगा ...

मन के सुख के लिये क्या जरूरी है ये तुम्हें तय करना है । अपने
बच्चों के साथ खेलो , बगीचे में पानी डालो , सुबह पत्नी के साथ घूमने निकल जाओ ,
घर के बेकार सामान को बाहर निकाल फ़ेंको , मेडिकल चेक - अप करवाओ ...
टेबल टेनिस गेंदों की फ़िक्र पहले करो , वही महत्वपूर्ण है ... पहले तय करो कि क्या जरूरी है
... बाकी सब तो रेत है ..
छात्र बडे़ ध्यान से सुन रहे थे ..

अचानक एक ने पूछा , सर लेकिन आपने यह नहीं बताया
कि " चाय के दो कप " क्या हैं ?

प्रोफ़ेसर मुस्कुराये , बोले .. मैं सोच ही रहा था कि अभी तक ये सवाल किसी ने क्यों नहीं किया ...
इसका उत्तर यह है कि , जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट लगे , लेकिन
अपने खास मित्र के साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेशा होनी चाहिए।